बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 चित्रकला - भारतीय वास्तुकला का इतिहास-II बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 चित्रकला - भारतीय वास्तुकला का इतिहास-IIसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 चित्रकला - भारतीय वास्तुकला का इतिहास-II - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- गढ़वाल शैली की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की व्याख्या कीजिए ।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. गढ़वाल कला के मुख्य कलाकार कौन थे?
2. गढ़वाल कला की मुख्य कृतियाँ कौन-सी हैं?
उत्तर-
भारत के सांस्कृतिक क्षेत्र के इतिहास में मुगल वंश का विशिष्ट योगदान पहाड़ी चित्र शैली के महल गढ़वाली चित्र विशेष रूप से सामने आ रहे हैं। मध्य काल में गढ़वाल मुगल सांस्कृतिक संबंधों के साथ ही एक गौरवशाली अध्याय की शुरुआत भी होती है जो दुर्लभ और अद्वितीय प्रसंग है। दुर्भाग्य से इस इतिहासकार को इस तथ्य से अवगत नहीं कराया गया। गढ़वाल के चित्र अन्य पहाड़ी कलाओं के समूह मुगल चित्रकला से प्रभावित राजपूत चित्रकला के पहाड़ी रूपान्तर हैं। गढ़वाली वास्तुकला के आधार स्तम्भ मुगल दरबार के दो चित्रकार थे, जो दिल्ली से गढ़वाल बसे थे। ये दोनों पिता-पुत्र श्यामदास और हरदास सन् 1658 ई. शहजादे सुलेमान शिकोह के साथ गढ़वाल (गढ़वाल) आए थे।
जिस समय दिल्ली के तख्त के लिए मुगल सम्राट शाहजहाँ के पुत्र औरंगजेब और दारा शिकोह युद्ध में थे, दारा लाहौर से दिल्ली की ओर बढ़ रहा था, उसका लड़का सुलेमान शिकोह उस समय इलिनोइस में था। सुलेमान की इच्छा थी कि वह अपने पिता की सेना के साथ मिल कर दिल्ली की ओर बढ़े। वहाँ से वह पहाड़ों के तलहटी में नगीना पहुंचे वहां से उन्होंने कूमाचल (कुमायूं) के पास नरेश के पास पत्र भेज कर राज्य में प्रश्रय देने का आग्रह किया गया। उनके इन दरबारों में दो चित्रकार श्यामदास और हरदास ने भी गढ़वाले के राज दरबारों में चित्रों का जन्म कराया।
गढ़वाली कला के सिद्धहस्त पारखी मोलाराम ने लिखा है कि जब यह पता चला कि श्यामदास और हरदास तंवर जाति के थे, और शहजादे सुलेमान के अनुयायी थे, तो गढ़वाली कला के राजा ने भी अपने दरबार में यथोचित सम्मान प्रदान किया था। इस प्रकार मोलाराम के पूर्वज गढ़वाल में चित्रकारों के जन्मदाता, श्यामदास और हरदास गढ़वाल में ही रह गए । राजा के पद पर नियुक्त किया गया था बालेश्वर नरेश को। साथ ही उनके लिये दरबार में तस्वीरदार का एक नया पद सृजन कर दिया था। स्वयं राजा यूक्रेनी फ्रेंच का अध्ययन भी करने लगा था।
इस प्रकार गढ़वाली रियासत के सानिध्य में हरदास के पुत्र हीरालाल और उनके लड़के मंगतराम के मुगल शैली के चित्र बने हुए हैं। मंगतराम के पुत्र मौलाराम गढ़वाल के चित्रकारों में सर्वोत्कृष्ट कला हुई। इस तरह की है गढ़वाली वास्तुकला शैली का जन्म स्थली गढ़वाली थी। वही 1894 में मोनाटाल की भयंकर बाढ़ से जिस गरीब का विनाश हुआ था। इस विनाश लीला को मोलाराम के पुत्र बजाराम गढ़वाल के चित्र भी गुलेर, मद्रास, मंडी और चंबा आदि पहाड़ी कलाओं की तरह मुगल कला से प्रभावित थे। सुलेमान शिकोह के जादूगर आने का वृतांत फोमा ऑटोमोबाइल मोलाराम ने अपनी यात्रा और अपनी कलाकृतियों और चित्रों का विषय सन् 1658 ई. में किवाल में लिखा था। मोलाराम के मंदिरों में स्थापत्य कला की नींव रखी गई थी। वह जीवित रहने तक 300 वर्ष तक जीवित रहा। उनके अंतिम नाम प्रसिद्ध चित्रकार तुलसीराम की मृत्यु 1950 ई. में हुई मूर्तिकला का स्वर्णिम काल मोलाराम का युग था।
गढ़वाली शैली के चित्रों के अध्ययन से पता चलता है कि एक वर्ष पूर्व मौलाराम मुगल शैली के चित्रों से जुड़ा हुआ था। इस श्रृंखला का पहला उपलब्ध चित्र " रानियों का शिपयार्ड" जिस पर काल संवत् 1826 फाल्गुन 15 (सन् 1769 मार्च) है। इसमें उन्होंने दरबारियों और कर्मचारियों की जी हुजूरी और चपलसी का एक आकर्षक चित्र लेख प्रस्तुत किया है।
एक अन्य शब्द चित्र जो मुकंदी लाल के संग्रह से प्राप्त हुआ है, यह रेखाचित्र 'हिंडोला' है। चित्रों में पंद्रह स्त्रियां हैं जो चार समूह में खड़ी हैं। एक मुगल दम्पति (स्त्री-पुरुष) हिंडोले में बैठे हैं। चित्रों में चित्रित पुरुष में ऐसा अद्भुत दृश्य होता है जैसे कि शेखाता राय (जहाँगीर ) है। वह बाग में किसी अपनी लाडली सखी के साथ झूल रही है। मुगल शैली का एक रंगीन चित्र, युवा अकबर एक ग्रामीण क्षेत्र पर जलपान करते हुये, मिला। इसी प्रकार 1936 में मुगल शैली का मस्तानी नामक चित्र बालकराम के संग्रह से मिला है जो मुगल शैली का उत्कृष्ट उदाहरण है।
गढ़वाली चित्रकला के विषय और विशेषताएँ सूचनात्मक नहीं रह रहे हैं, बरन स्टीन आर्टिस्ट के सामाजिक, आर्थिक-धार्मिक और राजनीतिक स्थिति के प्रमाणिक साक्ष्य भी इतिहास लेखन की दृष्टि से महत्वपूर्ण साबित हुए हैं।
गढ़वाली शैली के चित्र, हालाँकि गढ़वाली शैली के समान लघुचित्र हैं, गढ़वाली शैली के चित्रों में स्थापनों को अधूरा सरल और लघुचित्र बनाया गया है। इसमें रेखाएँ अधिक बलवती और प्रवाहपूर्ण हैं। गढ़वाली शैली की आकृतियों में अधिकांश वज्रीय आकृतियों को जोड़ा गया है। अफ्रीकी की आकर्षक भावपूर्ण मुद्राएं रंगीन चित्रों में भी चित्रित की गई हैं। इसमें बड़े-बड़े कमल उत्सव, लम्बी सीधी नासिका, गोल- चिबुक भावाभिव्यंजक हस्त मुद्राएँ तथा अंग भंगिमाएँ गढ़वाली शैली की स्त्री आकृतियों की आकृतियाँ हैं। पुरुषों के परिधानों में विशेष कपड़े जामा चुस्त, और पायजामा, पगड़ी, पटका आदि बनाये जाते हैं।
गढ़वाली शैली में सबसे अधिक संरचना प्रकृति की है। पहाड़ों की पृष्ठभूमि में चित्रांकन किया गया है। दृश्य चित्रण की यह पद्धति बहुत कुछ मुगल शैली को व्यक्त करती है। चित्रकारों का चित्रण विषय भागवत पुराण, रामायण, बिहारी सतसई मतिराम तथा रागमाला प्रमुख हैं। इन गढ़वाली शैली में सबसे अधिक संरचना प्रकृति की है। पहाड़ों की पृष्ठभूमि में चित्रांकन किया गया है। दृश्य चित्रण की यह पद्धति बहुत कुछ मुगल शैली को व्यक्त करती है । चित्रकारों का चित्रण विषय भागवत पुराण, रामायण, बिहारी सतसई, मतिराम तथा रागमाला प्रमुख हैं। इन विषयों के अतिरिक्त चित्रकारों ने अनेक देवी-देवताओं की संरचनाओं का निर्माण किया है। यहां रुक्मणी, मंगल, नल, दमयंती, गीत-गोविंद जैसे कलाकार, दशावतार अष्ट दुर्गा, कामसूत्र, शिव पुराण आदि पर भी चित्र बनाए गए हैं।
पहाड़ी कला के उच्च कोटी के मान्य पारखियों में गढ़वाले चित्रों को सबसे पहले डॉ. आनंद कुमार स्वामी ने दी, जिसमें मुकंदीलाल ने अपने संग्रह से 6 चित्र बनाए थे। इनके अध्ययन का आधार सन् 1916 ई. था। अपनी पुस्तक 'राजपूत पेटिंग' में लिखा है कि गढ़वाली पेंटिंग पेंटिंग और उसकी हवेली रियासत पैलेस आदि से मिलती जुलती है। गढ़वाली भित्तिचित्रों का कारण यह है कि मौलाराम ओर उनके साथियों की यादों में कई रंगीन चित्र और रेखाचित्र शामिल हैं। इसी प्रकार अंग्रेजी कलापारखी और समीक्षक एम.आई. आर्चर ने अपनी पुस्तक 'गढ़वाल पेंटिंग' में 10 रंगीन चित्र वाले गढ़वाली चित्रों के हवाले से लिखा है कि गढ़वाल में एक आकर्षक ही सुंदर रसीली, लावण्यामय, आकर्षक और चित्ताकर्षक शैली का विकास हुआ, जैसे पंजाब का एक अन्य क्षेत्र अधूरापन में विकसित हुआ। भारतीय पुरातत्वविदों को महानतम नमूने मिले हैं।
मौलाराम के बाद इस चित्र के पतन का चिन्ह और उस पर पाश्चात्य कला का प्रभाव शनै: शनै: संरचना पर दिखाई दिया। उन्नीसवीं सदी के मध्य में भारतीय चित्रकला पर. पाश्चात्य कला का प्रभाव पड़ा। गढ़वाली शैली भी इससे पहले नहीं रहीं। शिवराम की निर्मित हैं संलेमान शिकोह की छवि, बाबाराम के महादेव पार्वती और बद्रीनाथ-केदारनाथ के यात्रा पथ के नगरों के चित्र और उनके प्यारे पक्षी और फूलों की संरचना में और तुलसीराम के प्राकृतिक दृश्यों के चित्र में पाश्चात्य प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है।
मूर्तिकला के प्राचीन हो जाने के मुख्य आकर्षणों में चित्रकारों के गुणग्राहकों की नितांत कमी थी। इसके पूर्वी तट पर गोरखा अधिपति ( 1803 से 1815 ) और अंग्रेजी शासन के नियंत्रण में आने वाले क्षेत्र के ऊपरी भाग में और ब्रिटिश गढ़वाल के प्रभाग से श्रीनगर कला केंद्र का विनाश हो गया था, क्योंकि गोरखा और ब्रिटिश अधिपति ने अपने स्थान पर कला को बढ़ावा दिया था। खानदान की जागीरें छीनकर उनका गुजरात बंद कर दिया गया था। स्वयं मौलाराम के पुत्र भीराम कुमाऊं के आयुक्त सर हेनरी रामजे का अहलमद नियुक्त किया गया था, हालांकि वह निजी स्तर पर चित्रकारी भी कर रहे हैं। उसका भाई अब्बाराम आदि भी घर छोड़ कर बिखर गये थे। मोलाराम के वंशज जो आलीशान में रह गए थे, वे सोना, चांदी का काम करने लगे। इस प्रकार धीरे-धीरे यह कला का लोप हो गया।
इस चित्रांकन के लोप के अवलोकन में यह भी उल्लेखनीय है कि कलापक्ष की गूढ़ बातें, प्रावैधिक मर्म एवं रंग तैयार करने की विधि को मूलाराम ने अपने विद्वानों या शिष्यों को नही बताया। एक और कारण यह भी था कि डूबराम के बाद जो चित्रांकन जुड़े रहे उनमें से कुछ विक्षेपित होने लगे थे। उनके पागलपन का संबंध चित्रकला से माना गया था, इसी तरह उनके वंशजों ने राजवंशीय मुगल-गढ़वाल सांस्कृतिक संबंधों से जन्मी गढ़वाली चित्रित शैली को छोड़ कर चित्रकला जगत से ही नाता तोड़ दिया था ।
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- प्रश्न- पाल शैली पर एक निबन्धात्मक लेख लिखिए।
- प्रश्न- पाल शैली के मूर्तिकला, चित्रकला तथा स्थापत्य कला के बारे में आप क्या जानते है?
- प्रश्न- पाल शैली की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- पाल शैली के चित्रों की विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- अपभ्रंश चित्रकला के नामकरण तथा शैली की पूर्ण विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- पाल चित्र-शैली को संक्षेप में लिखिए।
- प्रश्न- बीकानेर स्कूल के बारे में आप क्या जानते हैं?
- प्रश्न- बीकानेर चित्रकला शैली किससे संबंधित है?
- प्रश्न- बूँदी शैली के चित्रों की विशेषताओं की सचित्र व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- राजपूत चित्र - शैली पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- बूँदी कोटा स्कूल ऑफ मिनिएचर पेंटिंग क्या है?
- प्रश्न- बूँदी शैली के चित्रों की विशेषताएँ लिखिये।
- प्रश्न- बूँदी कला पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- बूँदी कला का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- राजस्थानी शैली के विकास क्रम की चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- राजस्थानी शैली की विषयवस्तु क्या थी?
- प्रश्न- राजस्थानी शैली के चित्रों की विशेषताएँ क्या थीं?
- प्रश्न- राजस्थानी शैली के प्रमुख बिंदु एवं केन्द्र कौन-से हैं ?
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- प्रश्न- किशनगढ़ शैली के विकास एवं पृष्ठ भूमि के विषय में आप क्या जानते हैं?
- प्रश्न- 16वीं से 17वीं सदी के चित्रों में किस शैली का प्रभाव था ?
- प्रश्न- जयपुर शैली की विषय-वस्तु बतलाइए।
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- प्रश्न- किशनगढ़ शैली की विशेषताएँ संक्षेप में लिखिए।
- प्रश्न- मेवाड़ स्कूल ऑफ पेंटिंग पर एक लेख लिखिए।
- प्रश्न- मेवाड़ शैली के प्रसिद्ध चित्र कौन से हैं?
- प्रश्न- मेवाड़ी चित्रों का मुख्य विषय क्या था?
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- प्रश्न- शाहजहाँकालीन कला के चित्र मुख्यतः किस प्रकार के थे?
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- प्रश्न- शाहजहाँ कालीन चित्रकला मुगल शैली पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अकबरकालीन वास्तुकला के विषय में आप क्या जानते है?
- प्रश्न- जहाँगीर के चित्रों पर पड़ने वाले पाश्चात्य प्रभाव की चर्चा कीजिए ।
- प्रश्न- मुगल शैली के विकास पर एक टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- अकबर और उसकी चित्रकला के बारे में आप क्या जानते हैं?
- प्रश्न- मुगल चित्रकला शैली के सम्बन्ध में संक्षेप में लिखिए।
- प्रश्न- जहाँगीर कालीन चित्रों को विशेषताएं बतलाइए।
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- प्रश्न- बहसोली चित्रों की मुख्य विषय-वस्तु क्या थी?
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- प्रश्न- बहसोली शैली के लघु चित्रों के विषय में आप क्या जानते हैं?
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- प्रश्न- आधुनिक समय में तंजावुर पेंटिंग का क्या स्वरूप है?
- प्रश्न- लघु चित्रकला की तंजावुर शैली पर एक लेख लिखिए।